मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

गंगा की परछाई में चाँद की अठखेलियाँ...




आज मार्च,२००९ की १० तारीख है.दिन मंगलवार.खाना खाकर अभी- अभी लेटा हूँ.रात्रि के करीब पौने नौ बजे हैं.कमरे में मरघट का सन्नाटा है.फैन अपनी लोकप्रिय आवाज़ की मस्ती में घूम-झूम रहा है.शहर में होली की तैयारी चल रही है और मैं अकेले तन्हां-बोझिल मन से तुम्हारी यादों को टटोल रहा हूँ और उन्हें 'शब्द' दे रहा हूँ,डायरी के पन्नों में... 

तुम सुबह गाँव चली गई.जैसे लग रहा है कि तुम्हारे साथ सब कुछ चला गया,कमरे में सिर्फ तुम्हारी परछाई और यादें सन्नाटे के साथी हैं...

खिड़की के झरोखों से तुम्हारे जाते हुए पग को तब तक देखता रहा,जब तक की वो मेरे नज़रों से ओझल नहीं हो गए.तुम्हारे चलने का अंदाज़ ऐसा था,जैसे कोई तुम्हें धक्का देकर आगे बढ़ा रहा हो,बेमन,बे,अदा,बे रफ़्तार से तुम दायें हाथ में बैग लिए चली जा रही थी,अकेले ! ...सब कुछ लेकर...

तुम्हें गाँव बहुत प्यारा है.तुम अपनी माँ को बहुत प्यार करती हो,पिता को भी ! कोशिश करती हो की तुम्हारे किसी कदम से उन्हें,उनके दिल और सम्मान को,कोई ठेस न लगे...

मुझे मालूम है कि तुम्हारी प्रगति को तुम्हारे परिवार में सिवा माँ-बाप को छोड़कर कोई हजम नहीं करता.तुम्हारे परिवार में सदस्यों के साथ वैचारिक मतभेद हैं.बावजूद इसके तुम उस परिवार में त्यौहार को मनाने  जरुर जाती हो,क्यों इस सवाल का सार्थक और तर्क संगत जवाब भी तुम्हारे पास ही है, और मैं ...?  

जानना चाहोगी आज का दिन कैसे बीता.तुम्हारे जाने के बाद मैं सो गया,दिन भर सोता ही रहा,बीना कुछ खाए-बनाये.जो तुम खिलाये थे,वहीँ  पेट में उर्जा का स्रोत रहा...

करीब पाँच बजे उठा.मंजन किया.स्नान किया.अंगूर खाया,बादाम और काजू भी.इंडिया टुडे पढ़ा.भूख लगी.खाना बनाने चला.गैस पर दाल चढ़ाया,कुछ देर बाद गैस खत्म हो गया.हीटर खोजा.ठीक किया.थोड़ी देर बाद वह भी खराब हो गया.

बाज़ार गया.हीटर का नया एलिमेंट लाया,पन्द्रह सौ वाट का.बहुत देर में सेट हुआ.जैसे ही जला  या.पाँच-पाँच मिनट के अंतराल पर तीन जगह से  एलिमेंट  उड़ गया.अंततः बनाते-बिगाड़ते चावल दाल बनाया और दूध गरम किया.दुकानदार ने बताया था,एक नंबर का है,यह एलिमेंट.ताजुब है                   
एक नंबर का माल,एक घंटा भी नहीं जला-चला.

काफी बनाया चीनी नहीं मिली.या यूँ कहा जाये मैं नहीं खोज सका.जबकि तुम सब कुछ बता कर गए थे.कमरे में मन नहीं लगा रहा था.छत पर गया,फ़िजा में चारो तरफ धुंध था.

उत्तर दिशा की तरफ नज़र घुमाया,शहर की लाइटें टिमटिमा रहीं थीं.इनका प्रतिबिम्ब गंगा की लहरों से अठखेलियाँ कर रही थीं.पूरब की दिशा में मंज़र काफी दिल हिला देने वाला था.गंगा के उस पर दूर...कहीं तीन लाशों के जलने की आकृति दिख रही थी.किसी के लिए होली का जश्न,किसी के लिए तेरह दिन का गम...

पूरब और दक्षिण कोने पर नज़र गयी,राम नगर का किला (पूर्व काशी नरेश),एक दम भक्कसावन दिखा रहा था.कभी इस किले की महफिलें / रातें गुलज़ार हुआ करती थीं,याद कीजिये राजतन्त्र को...!

आसमान में देखा,चाँद बादलों की गोंद में अठखेलियों में मदमस्त था.मेरा चाँद दूर कहीं पूरब और दक्षिण के कोने में किसी गांव के अपने घर में,परिवार में मगन.

आसमान में तारे आज खो गए थे.बहुत नजर दौड़ाने पर दो-चार दिखे.तभी होलिका जलने की आहट,बच्चों के चिल्लाने,चहकने से आयी.आसमान में चारों तरफ होलिका दहन की रौशनी दिख रही थी.एकाएक  आसमान में लालिमा छा गई...

आप सोच रहे होंगे कि पश्चिम की तरफ मेरा ध्यान क्यों नहीं गया,दरअसल उस दिशा में एशिया का सुप्रसिद्ध विश्वविद्यालय का ज्ञान  बलुहट होता प्रतीत हो रहा था और 'मालवीय' जी...छड़ी लिए चले जा रहे थे...!      

छत पर कुछ बालक-बालिकाएं पटाखा लिए चहल कदमी कर रहे थे.वहाँ  की शांति-अशांति में तब्दील होती,इससे पहले मैं कमरे में दाखिल हो गया.कमरे में सन्नाटा था.लेकिन रह-रह कर धड़ाम-धड़ाम की आवाजें आती रहीं.तुम नहीं थी,लेकिन कमरे में तुम्हारी यादें थीं.उसी के सहारे कल्पनाशील बिस्तर के आगोश में...करवटें बदलता रहा,कब नींद आई,पता नहीं...

सुबह आँख खुली.बाहर का मंज़र देखा,चारों तरफ रंग और गुलाल उड़ रहे थे,लोग एक दूसरे के साथ फगुआ खेल रहे थे.और मैं तुम्हारी यादों से...            


मांफ करना तुम्हारी अनुपस्थिति में मैं आज एक 'शब्द' भी नहीं लिख सका.लिखने के लिए दिल,दीमाग और दृष्टिकोण  की जरुरत थी.वह सब तुम्हारे साथ चला गया था या फिर तुम्हारी यादों में खो गया था.मेरे पास थी तो बस शरीर,हाड़-मांस की...
                                          
                                                                            सिर्फ तुम्हारा ! 
                                                                            अब   'ज़ान'... भी जाओ ...!     
                
 अगले भाग की प्रतीक्षा करें !