गुरुवार, 26 जनवरी 2012

पूंजीवाद की विद्या हो या साम्यवाद की...


विद्या : आयात का साधन हो या निर्यात की मजबूरी !

विद्या !  तुम्हारे कितने रूप हैं ?
कोई तुम्हें अर्जित करता है,कोई वर्जित रहता है

कोई तिकड़म और जालसाजी से सब कुछ पा लेता हैकोई तुम्हें पाने के लिए दिन-रात रगड़-घिस करता है 

कोई लूटता और भ्रमित करता हैकोई अपराधी को झूठे तर्क से बचाता है और लोगों के नज़रों में होनहार बन जाता है      

कोई तुम्हारी आड़ में अपनो को उपकृत करता है,कोई उपकृत होता है  कोई धड़ाम- धड़ाम करता है,कोई भड़ाम- भड़ाम

यहाँ भी तुम्हारी ही बलिहारी की जय-जय कार होती है
 तुम कितने रूपों /स्वरूपों में मौजूद हो !


तुम क्या हो...?
किसी के लिए जीवन/जीविका की साधन हो
किसी के लिए दुरुपयोग का माध्यम हो

कुछ के लिए बौधिक प्रदर्शन का प्रतीक हो
कुछ के लिए अछूत हो

कुछ के पहुँच से बाहर हो
किसी के लिए चालाकी,लालच,चालबाजी,शातीरपन,तिकड़म,षड्यंत्र,इस दिशा में जितने 'शब्द' बनते हैं,उनके लिए सहायक हो

एक वे हैं जो तुम्हारे सहारे सही वक्त पर सही काम करते हैं
वे ही अक्सर संकट में क्यों रहते हैं ?
विद्या !

तुम बहुतों के लिए 'शिक्षा' हो
अधिकांश के लिए 'राजनीति' हो

किसी के लिए व्यापार हो
किसी के लिए व्यवसाय 

एक तुम्हारा 'आयात' करता है
दूसरा निर्यात 

सवाल उठता है
तुम्हारा असली रूप क्या हैं  

तुम आयात का साधन या निर्यात की मजबूरी
एक के लिए सहायक हो 
दूसरे के लिए असहाय 

कुछ के लिए 'धड्पकड़' हो
कुछ के लिए आपराधिक मानसिकता गढ़ती हो 

एक तुम्हारे बदौलत जग जीतता है
एक तुम्हारे सहारे जग/देश को बेचता है

तुम्हारा 'लाइसेंस' जिसके पास हो वह क्या नहीं करता है ?
एक तुम्हारे सहारे मारता है

एक तुम्हारे सहारे मरता है
एक तुम्हारे सहारे ही उसे बचाता है

तुम किसी के लिए बोध हो 
किसी के लिए अबोध 

वास्तव में !
तुम कितना कन्फ्यूजनात्मक हो

किसी के लिए धन उगाही का साधन हो
किसी के लिए 'धनदान' 

तुम्हारे ज्ञान का जवाब नहीं !
कोई लायक है
कोई नालायक है

तुम्हारा योगदान क्या है ?
एक शोधार्थी है
एक लूतार्थी है
तुम इन सब में कैसे संतुलन बनाती हो

विद्या !
तुम कितनी निराली हो
किसी के लिए धूप हो

किसी के लिए छाँव
किसी के लिए सुख हो
किसी के लिए दुःख 

तुम हकीकत में क्या हो ?
तुम्हारा कौन सा सच्चा चेहरा है ?

तुम्हारे रूप का रह्श्य कितना गहरा है
जो तुम दिखती हो या जो तुम छपती हो

छलियों के लिए तुम छलिया हो ?
तुम्हारे दर पर सब जाते हैं

तुम किसका साथ निभाती हो
अमीर या गरीब का

ऐसा क्यों प्रतीत होता है कि तुम 'न्यायविद' नही हो
तुम्हारे खिलाफ इल्जाम सही है ?

अगर तुम सबके लिए समान हो 
अलग-अलग रूप में क्यों दिखती हो

तुम किस कोटि की विद्या हो ?
किसी के लिए 'डिस्टेंस' हो

किसी के लिए फेस-टू-फेस
किसके प्रति जबाबदेह हो
दूर या नजदीक के लिए

विद्या !
एक के लिए तुम बाज़ार गढ़ती हो 
दूसरे के बनती हो

एक के लिए 'ग्लोबल' हो
दूसरे के लिए लोकल हो
तीसरे के लिए 'वोकल' हो 

 विद्या !
तुम 'दान' की हो या 'खान-दान' की 
तुम स्वार्थ की विद्या हो या निःस्वार्थ की 

तुम एक के लिए भ्रम फ़ैलाने का जरिया हो
दूसरे के लिए ज्ञान के प्रकाश का श्रोत 

एक के लिए भौकाल हो
दूसरे के लिए कंकाल हो
किसी के लिए निराकार हो
  
एक के लिए खिचड़ी हो
दूसरे के लिए खीर

एक के लिए रोजगार हो
दूसरे के लिए बेरोजगार

एक के लिए धांधली हो
दूसरे के लिए 'धर्मसंकट'

एक के लिए 'धनसंकट' हो
दूसरे के लिए 'अल्पसंकट'

एक के लिए गुणवत्ता हो
दूसरे के लिए गुणवत्ताहीन

एक के लिए हिमालय हो
दूसरे के लिए खाई हो...

एक के लिए सागर हो 
दूसरे के लिए ताल-पोखर 

एक के लिए वक्ता हो
दूसरे के लिए श्रोता 

तुम साधना की या कब्जा की विद्या हो 
तुम किसी को उठाती हो
किसी को गिराती हो

किसी को सहलाती हो 
किसी को फुफकारती हो 

किसी को तृप्त करती हो
किसी को उपकृत 

किसी को स्वीकृत करती हो
किसी को अस्वीकृत 

नोट की विद्या हो या श्रोत की 
खरीद दारी की या फौजदारी की 

युद्ध की विद्या हो या शान्ति की 

दुर्भावना की विद्या हो या सद्भावना की
कूटनीति की विद्या हो या रणनीति की 

नीति की विद्या हो या अनीति की 
तुम पूंजीवादी या साम्यवादी हो

विद्या !
तुम्हें गदहिया गोल से पीएच.डी तक बहुत जानने-समझने की कोशिश किये,लेकिन अंततः नाकाम ही रहे.
अब तो बतादो 
क्या हो ? 
अचरज या रहस्य .......  
..........................................................रमेश यादव