रविवार, 4 दिसंबर 2011

"नाऊ,धोबी-दरजी,ये तीनों अलगरजी"



"नाऊ,धोबी-दरजी,ये तीनों अलगरजी" 

१. दरजी !
बचपन में जब कभी बुजुर्गों के मुख से ये उक्ति सुनता था तो इसका अर्थ बहुत स्पष्ट समझ में नहीं आता था.जैस-जैसे बढ़ता गया,इसे सही अर्थों में समझता गया.

करीब 6 -7 साल की उम्र रही होगी.होली का त्यौहार था.तब इस त्यौहार को हम बच्चों के लिए  नए कपडे सिलवाया जाता था.गाँव से कुछ दूर एक पीढ़ी गत रिश्ते के दरजी के पास हम लोगों का कपड़ा सिलने के लिए दिया जाना था.नाप देने के लिए सशरीर जाना पड़ा.

दादा ने पूछ कब मिलेगा,बोला आज से पांचवे दिन.जिस दिन दादा कपड़ा लेने जा रहे थे.उत्साह में हम लोगों ने भी जाने की जिद की.दादा मान गए.हम लोग खेलते-कूदते पहुंचे.

दरजी के यहाँ होली के 'त्यौहार' पर कपड़ा देने-लेने वालों की भीड़ जमा थी.दादा को देखते ही दरजी बोला सरदार जी ! अभी तैयार नहीं है,कल भेजवा दूंगा.आने की जरुरत नहीं है....

इतना सुनना था कि 'दादा' गरम हो गए..... 

खास: 
कपडे हम लोग पहनते थे,सिलाई का नमूना बड़े बुजूर्ग पसंद/तय करते थे.उन लोगों का पसंद, हम लोगों के पसंद पर भारी पड़ जाता था.बचपन भी बुजूर्गों की मर्जी और पसंद के हवाले था.  

२. नाई !

खैर,हमलोग,मसलम, हम और हमसे ६ माह छोटा,मेरे चाचा.दादा बोले चलो तुम दोनों का बाल कटवाते चलते हैं.

जब हम लोग पीढ़ी गत नाई के पास गए,देखा कि उसके यहाँ भी लोग अपने बारी का इंतजार में बैठे हैं.हम लोगों को देखते ही दादा से बोला सरदार जी !

आप घर जाइये,कल सुबह हम 'पाही'  पर ही आ जायेंगें.दादा बोले जरुर आ जाना,होली आ रहा है,उसने बोला,जी ! आज शाम को छुरा पर 'धार' दिलवाने जाना है,कल जरुर से आऊंगा. 

तीन दिन तक उसका कल नहीं आया....
 
३. धोबी !

हम लोग पाही के नजदीक पहुंचे ही थे कि गाँव से आते हुए धोबी को दादा ने देख लिया.दादा कुछ मामलों में हमेशा चौकन्ना रहते थे.धोबी के मामले में भी.बोले क्या मंगरू कपड़ा लाये,बोला ! सरदार जी,सोमवार से लगातार मौसम ख़राब हैं.

कपड़ा तो धो दिया हूँ,लेकिन सुखा नहीं है.दादा बोले लेकिन तुम तो शनिवार को ही पहुँचाने का वादा किये थे.

बोला वो क्या था कि घर पर मेहमान आ गये थे,इसलिए धोने के लिए मौका ही नहीं निकल सका.

अब आप लोग समझ ही गए होंगे कि उक्त तीनों घटनाक्रम के बाद 'दादा' के दिमागी पारा का ग्राफ क्या रहा होगा...? 

दादा फटकारते हुए.पाही पर चल दिए.पाही पर एक दो मेहमान आये हुए थे,बाकि सब चाचा महफ़िल जमाये हुए थे.

दादा से लोगों ने पूछा क्या हुआ 'बाऊजी' कपड़ा नहीं मिला...इसी बीच मुझसे छोटे चाचा ने दादा को चिढ़ाने के लिए बोल दिया,फालतू का घूमा रहे हैं,सुबह से एक काम नहीं हुआ.

दादा भड़क गए,बोले सा..... 

"नाऊ,धोबी-दरजी,ये तीनों अलगरजी" 

दादा अब दुनिया में नहीं रहे.

आज 

आज तीस साल बाद उनकी कही यह बात याद आ गयी.शाम को धोबी को अल्टर के लिए पैंट दिया था.बोला एक घंटे में आइये,मिल जायेगा.जब मैं गया तो बोला अभी तैयार नहीं है,कल ले लीजियेगा....



नोट. 
इस पोस्ट को जाति गत निगाह से नहीं,पेशे गत नज़र से देखें और पढ़ें...