सोमवार, 29 अगस्त 2011

मीडिया अब 'वाच डॉग' कम,कटहा कुत्ता अधिक !

१. जब मीडिया 'मिशन' की जगह प्रोफेशन / व्यवसाय / व्यापार बन गया है तो उसके ऊपर भी वहीँ नियम लागू होने चाहिए जो एक व्यवसाय जगत के लिए होता है.

२. जब मीडिया की मनमानी पर कोई सवाल उठता है तो वे 'अभिव्यक्ति की आज़ादी' का झंडा लेकर खड़े हो जाते हैं.

३. मीडिया को कोई "सर्वहारा" नहीं चला रहा है.इसे चलाने वाले पूंजीपति हैं.वे कोई देश या राष्ट्र सेवा नहीं कर रहे हैं और न ही वे राष्ट्र भक्त हैं,वे सिर्फ और सिर्फ पूंजी भक्त हैं.उन्हें लाभ का आसार जहाँ दिखेगा,वे वहां तक अपना और पूंजी का विस्तार करेंगे.

४.जग जाहिर है कि पूंजी और बाज़ार का कोई मूल्य या आदर्श नहीं होता,उसका स्वाभाव लाभ कमाना है.लाभ ईमानदारी के रास्ते नहीं,बेईमानी के रास्ते कमाए जाते हैं.

५.जब मीडिया को "चौथा स्तम्भ" कहा जाता है तो इसके साथ उसकी जिम्मेदारी,जवाबदेही, प्रतिबद्धता,मूल्य,आदर्श और "मिशनरी" भावना है.इसीलिए इसे दूसरे पेशे से अलग सम्मान की निगाह से देखा जाता है.

६.आप मीडिया के शिक्षक (राघवेन्द्र जी) हैं और ऐसे कई घटनाओं के गवाह भी हैं,जब मीडिया में रहते हुए मैंने आप से साझा किया था.मीडिया संस्थानों में कार्यरत मीडियाकर्मी को उसके श्रम का पूरा भुगतान क्यों नही होता.श्रम कानून क्यों नहीं लागू होते.

७. मीडिया मालिकानों,राजसत्ता और लालफीताशाही का वह कौन सा गठजोड़ है,जिसका लाभ सिर्फ मालिकानों को मिलता है.

८. मीडिया मालिकान किस आधार पर (ज्ञान) समान योग्यता वालों को अलग-अलग लाभ और वेतन देते है.

९. मीडिया सिर्फ-सिर्फ एक माध्यम है.असली भूमिका तो वो निभाते हैं जो उसका संचालन कर रहे हैं.जाहिर है संचालक जैसा होगा परिणाम भी उसी तरह का निकलेगा.

१०.अब हम मीडिया को लेकर किसी भ्रम में नहीं जीते हैं.मीडिया अब तक जिन सवालों को उठता रहा है,वे सवाल किससे जुड़े रहे हैं...? वह वर्ग कौन सा है. इस पर जरुर विचार होना चाहिए .

११.हम लोग खेत-खलिहान और मड़ई से निकलकर संघर्षों के रास्ते आगे बढ़े हैं.समाज को अपनी नगाहों से देखते हैं,किसी रंगीले चश्में से नहीं....

१२. अब नज़रें धोखा नहीं खातीं हैं .....

१३. पूंजीवाद का चरित्र पानी पर फैले तेल की तरह है.

१४ .मेरा विचार है मीडिया को भी 'लोकपाल' के दायरे में आना चाहिए क्योंकि मीडिया अब बहुत से मामलों में 'वाच डॉग' नहीं,कटहा कुत्ता हो गया है....!

१५.मीडिया में आम आदमी कहाँ है.जल,जंगल,जमीन के लिए संघर्षरत लोग कहाँ स्पेस पाते हैं..?

१६. आदिवासी,दलित,पिछड़े और अल्पसंख्यक मीडिया में कहाँ हैं...? मीडिया संस्थानों में किस वर्ग की अधिकता है.

१७.मीडिया संस्थानों में निर्णय लेने वाले कौन लोग हैं,वे किस जमात से आते हैं.वे किसके हितों का संरक्षण करते हैं ...?

१८.टीवी और अखबारों में जो विज्ञापन दिखाए और प्रकाशित किये जाते हैं,उसकी प्रमाणिकता की जाँच कौन करता है.यह जनता में सपन दिखा कर किसको लूटते हैं.

१९.मीडिया को नेताओं के 'पीकदान' से कब मुक्ति मिलेगी.'पैड न्यूज़' की बदौलत कब तक मीडिया मन पसंद लोगों का छवि निर्माण करेगा और बाकियों को नंगा....

२०. इन सवालों का जवाब भी तो मीडिया संस्थानों से ही मिलने चाहिए.हमें किसी को फ़रिश्ता-भगवान मानने से इंकार करने की साहस दिखाने होगी.