रविवार, 1 मई 2011

मीडिया, महंत और मायाजाल ...?

मीडिया, महंत और मायाजाल ...?

मीडिया कर्मियों से उम्मीद की जाती है कि वे किसी भी ख़बर को सही,सटीक
निष्पक्ष,निर्भीक और वैज्ञानिक कसौटी पर रिपोर्ट करेंगे.
मीडिया शिक्षण के क्षेत्र में भी मीडिया कर्मी को आँख, नाक, कान,
दिल, दिमाग और दृष्टि खुली रखने के लिए ढेर सारे उपदेश दिए जाते हैं.
मीडिया के व्यवहारिक-व्यावसायिक जीवन में इसका अकाल है.
उदाहरण के तौर पर मौजूदा मीडिया को देखा जा सकता हैं.
भारतीय मीडिया में इस मसले पर संकट है.
यहाँ आस्था को सबसे ऊपर माना जाता है.
वैज्ञानिक रिपोर्टिंग को भारतीय मीडिया में
अपमान के तौर पर देखा जाता है.
मान लीजिये, आप किसी मीडिया संस्थान में रिपोर्टर-पत्रकार हैं,
विचार से वैज्ञानिक सोच रखते हैं.
किसी धार्मिक कार्यक्रम क़ी रिपोर्टिंग के लिए आपको भेजा गया.
आपको किसी बाबा,स्वामी पुजारी,साधू -संत के खिलाफ कोई ऐसी जानकारी मिली
जो अनैतिक है.आपने ख़बर भी लिख दी,
पता चला आपका वरिष्ठ,समाचार संपादक,
संपादक या फिर संस्थान का मालिक सम्बंधित संत,
महंत या महात्मा का अंध भक्त है.
आपक़ी खबर सही है, उसका सामाजिक सरोकार भी है.
लेकिन वो प्रकाशित-प्रसारित नहीं होगी.
क्योंकि आपने ये ख़बर लिखकर उनके ईश्वर का अनादर-अपमान किया है.
संभव है आपको संस्थान से निकाल भी दिया जाये.
क्योंकि आपने अपने मालिक के ईश्वर का महिमामंडन क़ी जगह उसके खिलाफ
लिखने क़ी दुस्साहस क़ी है, जिसके आशीर्वाद से मालिकान का धंधा (काला)
चल रहा है. आपके खून-पसीने से सने मेहनत- श्रम से उसे क्या लेना देना.
क्योंकि आप ईश्वर नहीं हैं.बाबा,स्वामी, पुजारी,साधू -संत ,
महंत या महात्मा नहीं हैं. आप सिर्फ एक रिपोर्टर-पत्रकार हैं.
मीडिया में ये माहौल क्यों हैं...?
उसका बड़ा कारण है, एक ऐसे वर्ग (भारतीय सन्दर्भ में जाति)
का मीडिया में वर्चस्व जो लम्बे समय से इस खेल में शामिल है.
अब वह बरगद का सोर (जड़) बन चुका है.
कमंडलधारी, राम-नामी दुपट्टा टांगे-ओढ़े, यह वर्ग मीडिया के रास्ते लोगों में
पाखंड, अंध विश्वास और धर्म -कर्म का ऐसा बीजारोपण किया है,
जिसके फसल को अब बाज़ार काट रहा है.
अब मंदिर,मठ,मस्जिद,गुरूद्वारे और चर्च जाने क़ी जरुरत नहीं है.
सुबह उठकर 'इन्टरनेट ऑन' कीजिये भगवान-ईश्वर आपके सामने...?
अब दर्शन-प्रसाद अपने स्क्रीन पर पाइए,पंडित.पुजारी,पादरी, मौलाना,
धर्म गुरु के दर का चक्कर लगाने क़ी जरुरत क्या है ...?
बाज़ार ने इनका काम तमाम कार दिया है...?
भारतीय मीडिया में भी एक वैज्ञानिक परिवर्तन क़ी जरुरत है ..
उम्मीद है नई पीढ़ी इस दिशा में जरुर कुछ करेगी.
मीडिया संस्थानों को भी क्यों न 'जन लोकपाल' के अंतर्गत लाया जाये...?
मीडिया और महंतों के 'मायाजाल' पर भी समाज को "महाजाल" डालने क़ी जरुरत है...?

नोट: Mr. Ritesh ठाकुर (स्टुडेंट, EMPM) द्वारा fb.पर, 'Sai Baba Tricks Courmpletely Exposed' Video देखने के लिए बार-बार प्रेरित करने के बाद यह कमेन्ट किया गया है.
मुझे उकसाने के लिए रितेश को क्या कहा जाये ये, आप सब पर छोड़ता हूँ ...?